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Thursday, November 12, 2020

जाने धन्वंतरी देव का पौराणिक मंत्र,मुहूर्त एवं पूजा की विधि आचार्य पं0उमेश पान्डेय जी के साथ

जाने धन्वंतरी देव का पौराणिक मंत्र,मुहूर्त एवं पूजा की विधि आचार्य पं0उमेश पान्डेय जी के साथ



धन्वंतरि देव का पौराणिक मंत्र


ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:


अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय


त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप


श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥


धनतेरस, धन्वंतरि त्रयोदशी या धन त्रयोदशी दीपावली से पूर्व मनाया जाना महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन आरोग्य के देवता धन्वंतरि, मृत्यु के अधिपति यम, वास्तविक धन संपदा की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी तथा वैभव के स्वामी कुबेर की पूजा की जाती है।


इस त्योहार को मनाए जाने के पीछे मान्यता है कि लक्ष्मी के आह्वान के पहले आरोग्य की प्राप्ति और यम को प्रसन्न करने के लिये कर्मों का शुद्धिकरण अत्यंत आवश्यक है।


कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों का हरण करने वाले देव हैं।


धन्वंतरि और मां लक्ष्मी का अवतरण समुद्र मंथन से हुआ था। दोनों ही कलश लेकर अवतरित हुए थे।


श्री सूक्त में लक्ष्मी के स्वरूपों का विवरण कुछ इस प्रकार मिलता है।


‘धनमग्नि, धनम वायु, धनम सूर्यो धनम वसु:’


अर्थात प्रकृति ही लक्ष्मी है और प्रकृति की रक्षा करके मनुष्य स्वयं के लिए ही नहीं, अपितु नि:स्वार्थ होकर पूरे समाज के लिए लक्ष्मी का सृजन कर सकता है।


श्री सूक्त में आगे यह भी लिखा गया है-‘न क्रोधो न मात्सर्यम न लोभो ना अशुभा मति:’


तात्पर्य यह कि जहां क्रोध और किसी के प्रति द्वेष की भावना होगी, वहां मन की शुभता में कमी आएगी, जिससे वास्तविक लक्ष्मी की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होगी। यानी किसी भी प्रकार की मानसिक विकृतियां लक्ष्मी की प्राप्ति में बाधक हैं।


आचार्य धन्वंतरि के बताए गए मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी उपाय अपनाना ही धनतेरस का प्रयोजन है।


श्री सूक्त में वर्णन है कि, लक्ष्मी जी भय और शोक से मुक्ति दिलाती हैं तथा धन-धान्य और अन्य सुविधाओं से युक्त करके मनुष्य को निरोगी काया और लंबी आयु देती हैं।


कैसे करें धन्वंतरि पूजन, पढ़ें विधि


कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वंतरि का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा है। अत: कोई भी नया बर्तन अवश्य खरीदें, ऐसा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।


इस दिन धन्वंतरि जी का पूजन इस तरह करें -


नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करें।


सायंकाल दीपक प्रज्ज्वलित कर घर, दुकान आदि को सुसज्जित करें।


मंदिर, गौशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएं।


यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करें।


हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें।


कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआं, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएं।


शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गद्दी बिछाएं अथवा पुरानी गद्दी को ही साफ कर पुन: स्थापित करें।


धन्वंतरि जी की पूजा से तात्पर्य आसपास के वातावरण की सफाई से है। समूह में दीपक जलाने से तापमान बढ़ता है, जिससे सूक्ष्म कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और प्रकृति स्वरूपा साक्षात् लक्ष्मी के आगमन का मार्ग प्रशस्त होता है।


 


पण्डित उमेश पाण्डेय-9795961829


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