कप्तानगंज (बस्ती) । ये खंडहर नही है साहब ये वह मकान है जो पिछले साल बारिश में गिर गया था जिसमे परिवार के चार पाँच लोग दबने से बच गए। इस मकान का कुछ हिस्सा पिछले साल तेज बरसात में गिर गया था जिसकी सूचना विकास विभाग व राजस्व विभाग के लोगों है। अबकी बार तेज मूसलाधार बारिश में बचा हुआ हिस्सा भी गिर गया।
सरकार दावा करती है कि सभी गरीब को आवास,राशन की कमी नही होने पाएगी लेकिन जब यह मकान गिरा तो इसकी सूचना लेखपाल, कानूनगो एवं सेक्रेटरी सबको दी गई,ग्राम प्रधान के अनुसार इनका नाम आवास योजना के अंतर्गत भेजा गया है लेकिन लगातार 01 वर्षों से सरकारी फाइलों में दबा इस आवास का पन्ना महज दिखावा रह गया। सरकारी दफ्तरों और जनप्रतिनिधियों के दरवाजे खटखटाते पीड़ित थक गया,लेकिन साल पूरे हो गए आवास का पता नही ग्राम विकास अधिकारी ने बताया कि लिस्ट में नाम है शाशन को भेजा गया है ऊपर से पास हो जाएगा तो आ जायेगा। क्षेत्रीय लेखपाल ने मकान गिरने पर इसका निरीक्षण कर रिपोर्ट भेजा था लेकिन तहसील स्तर से आपदा के नाम पर चार पैसे भी नही मिले।इस सरकारी खेल को क्या समझा जाय, सरकार की योजनाये एक मात्र दिखावा है या कर्मचारियों की लापरवाही है।जब बारिश की शुरुआत होती है तो उनसे पूछिये जिनके रहने को छत नही,पूरा परिवार पन्नी व त्रिपाल के सहारे रात दिन काटता है।
ये विषय आम जनता के साथ साथ कप्तानगंज विकास क्षेत्र के ग्राम पगार निर्मला पत्नी त्रिपुरारी पाण्डेय का है। त्रिपुरारी पांडे भाजपा के बूथ भी हैं लेकिन उसके बावजूद भी एक अदद आवास के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है l लगातार कई वर्षों से आवास की मांग रहे पाण्डेय ने बताया कि ईश्वर की व्यवस्था है कि हम पति पत्नी बच्चों सहित इस गिरे मकान में पन्नी के नीचे रहते है। ईश्वर ने 06 बेटियां दी उसके बाद एक बेटा दिया उन्ही के भरण पोषण पढ़ाई लिखाई में खेती किसानी करते हुए जीवन यापन कर रहे है। 04 बेटियों की शादी हो गयी है अभी 02 बेटियों की शादी करना है। जिम्मेदारियों के बोझ में दबे होने के कारण रहने के लिए मकान नही बना पाए।जब पिछले साल पुराना मकान गिर गया तो आवास योजना के अंतर्गत एक आस थी कि आवास मिल जाएगा लेकिन सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते लगाते थक गया हूँ।
एक आवास की पूरी पात्रता होने के बाद भी इतना चक्कर लगाना पड़ रहा है जबकि हमारा राशन कार्ड भी अंत्योदय श्रेणी का है।
No comments:
Post a Comment